CJI ने हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस को किया फोन, ऐसी क्या बात हुई जो गुस्से में पटक दिया रिसीवर?

मशहूर उपन्यासकार विक्रम सेठ की मां लीला सेठ भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. पहले उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाया गया और फिर सितंबर 1990 में कार्यवाहक चीफ जस्टिस नियुक्त कर दिया गया. उन दिनों जस्टिस रंगनाथ मिश्रा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) हुआ करते थे. एक मौका ऐसा आया जब, CJI मिश्रा, लीला सेठ पर बुरी तरह भड़क उठे. इतना नाराज हुए कि गुस्से में फोन का रिसीवर पटक दिया. लीला सेठ ने अपनी आत्मकथा ‘घर और अदालत: एक महिला चीफ जस्टिस की कलम से’ में इस वाकये का विस्तार से जिक्र किया है.

CJI ने अचानक किया फोन
लीला सेठ लिखती हैं कि कार्यवाहक चीफ जस्टिस बनने के करीब डेढ़ महीने बाद 15 नवंबर की शाम असाधारण तौर पर मुझे भारत के चीफ़ जस्टिस की तरफ से फोन किया गया. हालांकि मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि मैंने इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन के एक काम के सिलसिले में उनसे मिलने का समय मांगा था. मैं इस एसोसिएशन की सेक्रेटरी थी. मुझे लगा कि संभवत: सीजेआई उसी के सिलसिले में बात करना चाहते हैं और फोन किया है, लेकिन जो बातचीत हुई वह काफी चौंकाने वाली थी.

चीफ जस्टिस पर क्यों चीखने लगे CJI
मैंने फोन उठाते ही कहा- गुड इवनिंग, चीफ़ जस्टिस. अभिवादन के बाद मैंने आगे कहा- आपसे इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन के संदर्भ में मिलने का समय देने का आग्रह किया था. उन्होंने जवाब दिया, शुक्रवार को मैं कलकत्ता जा रहा हूं और अगले हफ़्ते लौटकर आपको बताऊंगा. मैंने उनसे आगे कहा- आप तो जानते ही होंगे कि आमतौर पर भारत के चीफ जस्टिस इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन की भारतीय इकाई के अध्यक्ष होते हैं, इसलिए मैं और मिस्टर बी. सेन आपसे मिलकर आग्रह करना चाहते हैं. उन्होंने रुखाई से बात बीच में ही काटते हुए कहा: ‘वह तो ठीक है…’ थोड़ा रुकने के बाद उन्होंने काफी नाराजगी भरे स्वर में बोलना शुरू किया और फिर चिल्लाने लगे.

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आखिर तक एक ही जिद पर अड़े रहे CJI
लीला सेठ लिखती हैं कि सीजेआई रंगनाथ मिश्रा ने मुझसे कहा- मुझे पता चला है कि आपकी अदालत में कई जज दोपहर के समय नहीं बैठते. मैंने जवाब दिया कि यह सही नहीं है. एक या दो जज ऐसे हो सकते हैं जो नियमित न बैठें, लेकिन इसके कई कारण हो सकते हैं. सीजेआई ने चीखते हुए कहा- ऐसे एक-दो जज भी क्यों होने चाहिए? मुझे पता है कि ऐसे कई जज हैं. आप फौरन उनका नाम भेजिये, मैं उन्हें ट्रांसफर कर दूंगा. उनकी ये मजाल कैसे हुई कि दिल्ली में रहते हुए काम से कन्नी काटें.

लीला सेठ (Leila Seth) लिखती हैं कि मैंने सीजेआई (CJI) से कहा कि जब मैं 1972 में दिल्ली आई थी, तब यह चलन आम था. ज्यादातर जज दोपहर में कॉफी पीने के लिए उठ जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता है. पर वे (सीजेआई) अपनी बात पर अड़े रहे और कहा मुझे बस ऐसे जजों के नाम भेजिये. यह कहते हुए गुस्से में उन्होंने रिसीवर पटक दिया. लीला सेठ लिखती हैं कि उनकी बात सुनकर मैंने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू रखा.

Leila Seth Indian judge

दोबारा किसका फोन आया?
लीला सेठ लिखती हैं कि सीजेआई के इस व्यवहार से मैं बिल्कुल हैरान और परेशान थी. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश क्या हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से इसी अंदाज में बात करते हैं या एक महिला होने के नाते मेरे ऊपर धौंस जमा रहे हैं या फिर मेरे साथ ऐसा व्यवहार इसलिए किया कि मैं कार्यवाहक चीफ जस्टिस हूं? मेरे मन में तमाम सवाल चल रहे थे. अचानक फोन की घंटी दोबारा बजी. मुझे लगा कि शायद गुस्सा शांत होने के बाद चीफ जस्टिस अपने व्यवहार पर खेद जताना चाह रहे हैं, लेकिन फोन पर दूसरी तरफ दिल्ली हाई कोर्ट में मेरी साथी और मित्र जस्टिस सुनंदा भंडारे थीं. उन्हें मुझे बताया कि थोड़ी देर वह भारत के चीफ जस्टिस से मिलीं. CJI रंगनाथ मिश्रा ने जैसे ही मुझे देखा कहने लग अभी-अभी तुम्हारी मित्र को जमकर झाड़ लगाई है.

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चीफ जस्टिस ने CJI को लिखा- मुझसे ऐसे बात न करें
लीला सेठ लिखती हैं कि मुझे बहुत हैरानी हुई कि और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और मेरे बीच क्या बात हुई, इसे एक तीसरे जज से बताने की क्या जरूरत पड़ गई. सीजेआई के व्यवहार से दुखी होकर जस्टिस लीला सेठ ने उन्हें एक लंबा चौड़ा पत्र लिखा, जिसमें साफ-साफ उनके व्यवहार पर नाराजगी जताई. सेठ ने अपने पत्र में लिखा, ”मैं भारत के चीफ जस्टिस के प्रति पूरा आदर रखती हूं और बदले में वैसी ही अपेक्षा रखती हूं. आपने फोन पर जिस तरीके से बात की, उससे मुझे बहुत दुख हुआ. मैं इसकी आदी नहीं हूं और चीख-चिल्लाकर या आक्रामक अंदाज में मुझसे बात न की जाए. न ही मुझे मातहत के अंदाज में बात सुनने की आदत है. मैं अपना विरोध जताती हूं…”

सेठ के मुताबिक चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने उनके इस पत्र का जवाब तो नहीं दिया लेकिन बाद में जब उनसे इंटरनेशनल लॉ संगठन के सिलसिले में मिले तो बहुत शालीनता और सौदहार्दपूर्ण तरीके से पेश आए. शायद उन्हें अपने अभद्र व्यवहार का अंदाजा हो गया था.

Tags: DY Chandrachud, Justice DY Chandrachud, Supreme Court, Supreme court of india

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